Thursday, February 18, 2010

कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

१. खा गया पी गया दे गया बुत्ता ऐ सखि साजन? ना सखि कुत्ता!
२. लिपट लिपट के वा के सोई छाती से छाती लगा के रोई दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
३. रात समय वह मेरे आवे भोर भये वह घर उठि जावे यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!
४. नंगे पाँव फिरन नहिं देत पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत पाँव का चूमा लेत निपूता ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!
५. ऊंची अटारी पलंग बिछायो मैं सोई मेरे सिर पर आयो खुल गई अंखियां भयी आनंद ऐ सखि साजन? ना सखि चांद!
६. जब माँगू तब जल भरि लावे मेरे मन की तपन बुझावे मन का भारी तन का छोटा ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!
७. वो आवै तो शादी होय उस बिन दूजा और न कोय मीठे लागें वा के बोल ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!
८. बेर-बेर सोवतहिं जगावे ना जागूँ तो काटे खावे व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी!
९. अति सुरंग है रंग रंगीले है गुणवंत बहुत चटकीलो राम भजन बिन कभी न सोता ऐ सखि साजन? ना सखि तोता!
१०. आप हिले और मोहे हिलाए वा का हिलना मोए मन भाए हिल हिल के वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा!
११. अर्ध निशा वह आया भौन सुंदरता बरने कवि कौन निरखत ही मन भयो अनंद ऐ सखि साजन? ना सखि चंद!
१२. शोभा सदा बढ़ावन हारा आँखिन से छिन होत न न्यारा आठ पहर मेरो मनरंजन ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन!
१३. जीवन सब जग जासों कहै वा बिनु नेक न धीरज रहै हरै छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन? ना सखि नीर!
१४. बिन आये सबहीं सुख भूले आये ते अँग-अँग सब फूले सीरी भई लगावत छाती ऐ सखि साजन? ना सखि पाती!
१५. सगरी रैन छतियां पर राख रूप रंग सब वा का चाख भोर भई जब दिया उतार ऐ सखि साजन? ना सखि हार!
१६. पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार!
१७. सेज पड़ी मोरे आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखाए किस से कहूं अब मजा में अपना ऐ सखि साजन? ना सखि सपना!
१८. बखत बखत मोए वा की आस रात दिना ऊ रहत मो पास मेरे मन को सब करत है काम ऐ सखि साजन? ना सखि राम!
१९. सरब सलोना सब गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)
२०. सगरी रैन मिही संग जागा भोर भई तब बिछुड़न लागा उसके बिछुड़त फाटे हिया’ ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक)
21.राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा!
22.बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन न सखि! आम।।
23.नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है।मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।
24.आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।
25.घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें,कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन न सखि! तोता।।

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