Friday, April 7, 2023

Ghazal

 मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता


नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए

नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता


वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा

किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता


वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे

कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता


जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ

यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता


खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में

तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता


No comments: